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रूठा सनम

रूठा सनम  

हमने माना है उसका भी दिल काँच सा टूटा हुआ है 

हो न हो वो शख्स भी मोहब्बत से रूठा हुआ है

जब पूछा मोहब्बत में क्यों मिली रुसवाई 

कहने लगा रूठ गई है मुझसे मेरी खुदाई 

आओ में कह दू तुझसे अपने दिल की सारी बातें 

रब जाने कल हो न हो मेरी तुझसे मुलाकातें 

वो कह गए हैं तुम अपनी दुनिया में जीते रहना 

हमें विदा कर आँखों के अश्कों को पीते रहना 

जुदा हुए हैं जबसे वो दुनिया ही बदल गई है 

ऐसा लगा कि सागर की लहरों में आग लगी है

वो क्या रूठा मुझसे मेरी खुशियाँ रूठ गई हैं

मुझसे जुड़े हर एक रिश्ते की डोरी टूट गई है

ऐ सनम तुम अगर यहीं हो सुन लो मेरी फरियाद को 

तुमसे जुड़े हर इक नाज़ुक किस्से को हर इक याद को 

रूठ गई है अखियाँ तेरी, रूठ गया आँगन तेरा 

रूठ गया वो शर्म का परदा, रूठ गया दामन तेरा 

तुम क्या रूठे रूठ गई है, मुझसे मेरी तन्हाई 

मुझसे रूठी मौसम में, बहती ठण्डी सी पुरवाई 

रूठ गई है चाँदनी मुझसे,रूठी हर एक रात है 

रूठ गई है किस्मत मेरीरूठी हर एक बात है 

रूठा है हर सीप का मोती, रूठी हर एक माला है 

रूठा है मैखाना मुझसे, रूठा नशे का प्याला है 

रूठ गई सागर की लहरें, रूठ गई है हर कश्ती 

रूठ गया है सारा आसमां, रूठ गई है हर बस्ती 

जाऊँ कहाँ मैं तुम ही कह दो, रूठ गया हूँ मोहब्बत से 

अब तो मुझको तुम ही अपना लो, अपनी दुआ से इबादत से ... 


रचियता V.Nidhi 

   
 

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