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अश्क़

 अश्क़ 

जो कहना है मुझसे कहो मेरे अश्कों को इल्ज़ाम न दो 

अश्क़ लगे बेगाने गर तो इनको अपना नाम न दो 

एक तड़पती नई कहानी बनने न पाए प्यार मेरा 

ऐसा ना हो बन जाये सजा प्यार का वो इकरार मेरा 

अश्क़ नहीं हैं ये अपने हैं मेरे घर के आँगन के 

याद दिलाते हरपल मुझको प्यार के पहले सावन के 

सावन का हर भीगा कतरा तेरी बात बताता है 

तू अकेली नहीं यहाँ पर अश्क़ यही कह जाता है 

तुमने मुझे अधूरा छोड़ा, छोड़ दिया तरसने को 

सूनी अँखियाँ छोड़ दी तूने फिर एक बार बरसने को 

तुमने मुझसे नाता तोडा अब अश्क़ बने हमदम मेरे 

यही हैं मेरे जीवन साथी तुम न बने साजन मेरे 

एक इल्तज़ा मेरी तुमसे बहने दो गर ये बहते हैं 

हरदम मेरे साथ रहे हैं मुझको अपना कहते हैं 

नमी सजाकर इन आँखों में क्यूँ अश्क़ों को इल्ज़ाम दिया 

मेरी आरज़ू तोड़ी तुमने क्यूँ इनको अपना नाम दिया 

 

रचयिता V.Nidhi 

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