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यूँही चल दिए

यूँही चल दिए 

                                                          

रूसवा कर के हमें फिर वो चल दिए 

रोक न सके कदम उनके ये अश्क हमारे भी 

कितनी हसरत से हमने देखा था, उन्हें एक आखरी बार 

नजरें न मिला पाए हमसे, तो मुस्कुरा के चल दिए 

फिर एक अधूरा सवाल, छोड़ गए दिल में मेरे 

बिना इल्ज़ाम लगाए हम पर, क्यूँ इतरा के चल दिए   

जिन नजरों के इशारों को, तरसा करते थे रात भर 

उन इशारों की राजी पर, क्यूँ घबरा के चल दिए 

सहमी-सहमी निगाहों में, कितने सपने छुपाये थे 

पढ़ लिए जो राज हमने, क्यूँ शरमा के चल दिए 

जब हमने ही किया इकरार, उनसे अपने प्यार का 

क्यूँ मेरे इकरारे उस प्यार को, वो ठुकरा के चल दिए 

इक तमन्ना भी तो मेरे दिल की, वो पूरी न कर सके 

फिर क्यूँ मेरी वफाओं से, वो कतरा के चल दिए 


रचयिता V.Nidhi 

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