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मन की एक कहानी


मन की एक कहानी 


बैठी थी चुपके से आकर, मेरे मन में एक कहानी 

सुना रही थी राज वो अपने ,बीते प्यार की बात सुहानी 

प्यार मिला संग रस्में थीं , कसमें थीं मीठे वादे  थे

बंद हुई पलकों की ओट से, अश्क सुनाते नाते थे 

नाता भी कुछ ऐसा था ,जो शब्दों का मोहताज़ नहीं

 रिश्तों के बंधन में बँधना, आता उसको रास नहीं 

मन से मन का अटूट रिश्ता,जोड़ नहीं वो धागों का 

रिश्तों को पूरा करने में, कुछ था सहारा ख्वाबों का 

रास नहीं आया दुनिया को, मेरा हँसना मुस्काना 

छीन लिया हमदम को मेरे, बना दिया उसे बेगाना 

एक आरज़ू लेकर मन में, खुद को फिर मैं हँसाती हूँ 

दुनिया से क्या गिला करुँ, वो तो मेरे मन का साथी है 

शिकवा बस एक यही रहा, क्यूँ  छोड़ा उसने साथ मेरा 

दिल तोडा सो तोडा फिर, बदनाम किया क्यूँ प्यार मेरा  

मेरे प्यार को बना के किस्सा ,आज भी वो खुश रहता है 

प्यार करुँ मैं हरदम उससे, दिल मेरा अब भी कहता है 

तभी रची है एक कहानी, फिर से अब के सावन में 

आयेगा वो लौट के वापस, मेरे मन के आँगन में 


रचियता V.Nidhi  

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