कोरोना में गुजरे वक़्त का एहसास
गुजरे
वक़्त का हर लम्हा, एक पाठ पढ़ाता जाता है
जीवन
जीने की नई कला, हर रोज सिखाता जाता है
तुम
घर बैठो सबसे डरकर, कोई छू न सके तुमसे मिलकर
चेहरे है नक़ाब से ढके हुए, कोई रोग सताता जाता है
जब
हम अंदर प्रकृति बाहर, पक्षियों ने उड़ान भरी जमकर
नदियों
का स्वच्छ हुआ वो जल, अविरल सा बहता जाता है
जंगल
पनपे वादी चहकी, अब पवन चले महकी-महकी
आसमान
का नीला रंग, अब और साफ हो जाता है
पर
पड़ी मुसीबत दूजी ओर, कोई काम नहीं दिखता चहुँ ओर
सब
लौटे अपने देश नगर, कोई पैदल चलता जाता है
कितनों ने प्रियजन को खोया, अनगिनत नयनों ने रोया
नहीं
मूल्य मुद्राओ का, कल यही जताता जाता है
मानवता
अब भी जीवित है, हर शख्स ने ये दिखलाया है
मानव
सेवा ही परम धर्म, यही सुख का द्वार दिखाता है
जीवन
की भागदौड़ से भी, कुछ अलग है जीवन जीने को
आज
हूँ मैं, तू
मुझमे जी, यही समय हमें सिखलाता है
रचयिता V.Nidhi
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