रोना आया
जिंदगी की उस हंसी शाम पे
रोना आया
एक बार फिर मुझे तेरे नाम
पे रोना आया
किस्मत नहीं हमारी चाहत मिले कभी
गुजरे हुए इश्क़ के फरमान
पे रोना आया
चाहत निभा गई फिर बेवफाई
मुझसे
एक बार फिर तेरे इल्ज़ाम
पे रोना आया
हॅसते मुस्कुराते गुजरे वो दिन कभी
उन दिनों में बीते अरमान पे रोना आया
एक हँसी देकर फिर रूठे
क्यों वो मुझसे
मुझे अपने इश्क़ के परवान
पे रोना आया
चाहा कभी क्यूँ तुझको इस बेज़ुबान दिल ने
पलकों से बहते अश्क़ के
ईमान पे रोना आया
कागज़ के चंद टुकड़े शिकवा जो कर रहे है
बेवफाई के तेरे पैगाम पे
रोना आया
तुझको समझ न पाई बस यही
खता की मैंने
अपनी ही इस खता के अंजाम
पे रोना आया।।
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