नारी शक्ति
हाँ -हाँ मैं तो लड़ जाती हूँ, अपनी हद से बढ़ जाती हूँ
कोई टिक न सका सम्मुख मेरे, मैं विजय ध्वजा फहराती हूँ
मैं उस युग की परम सती, जो पति अपमान से राख हुई
मैं ही काली कल्याणी हूँ, जो शिव छाती चढ़ जाती हूँ
मैं बनी अहिल्या पत्थर की, जो श्राप मिला स्वीकार गई
मैं सतयुग की शबरी हूँ, जो झूठे बेर खिलाती हूँ
हाँ-हाँ मैं तो लड़ जाती हूँ, अपनी हद से बढ़ जाती हूँ
मैं बनकर दुर्गा अष्टप्रभा, असुरों का भी संहार करुँ
मैं लेकर जन्म धरातल से, सीता माता कहलाती हूँ
मैं वही हूँ मीरा कान्हा की, जो विष का प्याला पीती हूँ
मैं बरसाने की राधा हूँ, कान्हा संग रास रचाती हूँ
हाँ-हाँ मैं तो लड़ जाती हूँ, अपनी हद से बढ़ जाती हूँ
मैं अग्नि उत्पन्ना पांचाली, शतपुत्रों पर हुंकार भरूँ
मैं महाभारत की अम्बा हूँ, भीष्मा से भी लड़ जाती हूँ
मैं पतिव्रता पद्मावती हूँ, जिसने जौहर को अपनाया
मैं सत्यवान की सावित्री, यम से भी प्राण ले आती हूँ
हाँ -हाँ मैं तो लड़ जाती हूँ, अपनी हद से बढ़ जाती हूँ
मैं झाँसी की वो रानी, जिसने दुश्मन को खदेड़ दिया
मैं ही मदर टेरेसा बनकर, अमन शांति फैलाती हूँ
मेरे कितने ही रूप अनेक, मुझमे खुशियों की गहराई है
मैं ममता की मूरत हूँ, सृष्टि भी मुझमें समाई है
हाँ लड़ी हूँ मैं -हाँ लड़ी हूँ मैं, अपनी छवि को सम्मान दिलाने के खातिर
बना वही बस दुश्मन है, जिसने मुझे हद दिखलाई है
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