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ठिकाना ढूढ़ना पड़ा

 

  ठिकाना ढूढ़ना पड़ा


समंदर की रेत का ठिकाना ढूढ़ना पड़ा

तुझसे मिलने को हमें इक बहाना ढ़ूढ़ना पड़ा  

कुछ भूली बिसरी बातें अब तक दबी हुई है 

उन यादों के ही खातिर बीता ज़माना ढूढ़ना पड़ा 

तेरी आवाज़ की कशिश अब तलक भी गूंजती है 

उस सरगम पे गाया तराना ढूढ़ना पड़ा 

हमने जो मिल सजाया एक प्यार का घरौंदा 

उस रेत से बना वो आशियाना ढूढ़ना पड़ा

तेरे संग बिताया कुछ खास वक़्त ऐसा 

उस वक़्त को भुलाने मैख़ाना ढूढ़ना पड़ा 

तेरी नशीली आंखों से जो अश्क बहते आए 

उस अश्के जाम के खातिर पैमाना ढूढ़ना पड़ा

अब तलक छुपाया हमने ही इश्क़ हरदम 

हुआ इश्क़ जो उजागर अफसाना ढूढ़ना पड़ा

तुमने भी साथ छोड़ा यूँ  इश्क़ के सफर में 

तेरी दुनिया को बसाने घराना ढूढ़ना पड़ा

 रचियता-V. Nidhi  

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