वो कहते हैं
वो कहते हैं
हमें इश्क़ के समन्दर में उतरना नहीं आता
टूटे हुए आईने में फिर सँवरना नहीं आता
वो कहते है उजड़ी पलकों में ख़्वाब सजाना सीखो
तुम्हें टूटी माला के मोती पिरोना नहीं आता
वो कहते है तुम भी अश्कों को बहाना सीखो
तुम्हें भूले को रास्ता दिखाना नहीं आता
अपनी यादों में ही गुम रहते हो अजनबी की तरह
तुम्हें तो महफ़िल में रंग जमाना भी नहीं आता
अपलक नयनों से निहारते रहते हो बुत की तरह
तुम्हें उजड़े आशियां को फिर बनाना नहीं आता
खुद ही तड़प के रह जाते हो अपने गम से तुम
तुम्हें तो किसी पे इल्ज़ाम लगाना भी नहीं आता
वो कहते है मेरे गीतों को गुनगुनाना सीखो
तुम्हें तो कोई सरगम बनाना भी नहीं आता
वो कहते है कुछ तो खता करना सीखो
तुम्हें तो कोई दूजा आशिक बनाना भी नहीं आता
वो कहते है कि हम रूठे हुए हैं तुमसे
पर क्या करे तुम्हें तो रूठे को मनाना भी नहीं आता
वो कहते हैं कि तुम कोई शिकवा ही कर लो हमसे
पर तुम्हें तो किसी को सताना भी नहीं आता
वो कहते रहे कि हमसे प्यार करना तो सीख लो
पर तुम्हें तो कोई बात जताना भी नहीं आता
अब वो कहते हैं कि जब एहसास हुआ मुझे तेरी मासूम चाहत का
तुझसे ही ये सीखा हमने कि हमें ही प्यार निभाना
नहीं आता
रचियता V.Nidhi
1 टिप्पणियाँ
bahut khoob
जवाब देंहटाएंThanks for comment