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यादें

 यादें 


क्यू अक्सर हमें अपनी यादों में तुम बुलाते हो
 

याद करते-करते हमें खुद ही तो बहक जाते हो

हमने तो कभी परेशां किया नहीं तुम्हें

 नाम हमारा लेकर खुद ही परेशां हो जाते हो 

क्यूँ निभा नहीं पाए अब तक पुराने वादों को 

कहते थे हमेशा तुम ही वादा निभाते हो 

मुझसे नहीं परछाई से ही बातें किया करते थे 

आज क्यूँ तुम अपनी परछाई को ही खुद से दूर भगाते हो 

तुमने ही मुझसे आँचल के साये की पनाह माँगी 

खुद क्यूँ मेरे आँचल में फिर दाग लगा जाते हो 

लफ्ज़ों की नज़ाकत को कुछ-कुछ समझ चुके थे

 तुम क्यूँ उस नज़ाकत की नई इबारत बना जाते हो 

नाचीज़ का दिल दुखाया खुद भी तरसे हर दम

 उस तड़पे दिल के दुःख से अब तक मुझे सताते हो 

जिन्दा रहने की कोशिश तो हमने भी बहुत की

अब क्यूँ मेरी नाकामी पर तुम आँसू बहा जाते हो 

अब हम तेरे पास नहीं हैं बस कुछ यादें है बाकी

 उन यादों को याद करके तुम क्यूँ खुद को रुलाते हो   

तेरे अश्कों की कीमत को ये दिल ही जानता है

तुम क्यों मेरी अमानत को खुद पर लुटा जाते हो...    


रचयिता V.Nidhi


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